भारत में अमरूद एक पसंदीदा फल है। जिसे लोग बेहद चाव के साथ खाते हैं। यह मिनरल्स औऱ विटामिन से भरपूर होता है। इसकी पैदावार मुख्यतः सर्दियों के मौसम में होती है, लेकिन अब ऐसी किस्में में आ गई हैं जिससे बाजार में हर मौसम में अमरूद उपलब्ध होता है।
अमरूद में प्रचुर मात्रा में फाइबर पाया जाता है, जिससे लोग उत्तम स्वास्थ्य के लिए इस फल का सेवन करना पसंद करते हैं।
बाजार में अमरूद के अच्छे खासे दाम मिल जाते हैं, ऐसे में किसान भाई अमरूद की खेती करके कम समय में ही अच्छी खासी कमाई कर सकते हैं।
अमरूद एक बागवानी फसल है। इससे जैम, जैली, नेक्टर आदि परिरक्षित पदार्थ तैयार किये जाते है। इसकी पौष्टिकता को ध्यान मे रखते हुये लोग इसे गरीबों का सेब कहते हैं। यह स्वास्थ्य के लिए अत्यंत लाभदायक होता है। इसमें विटामिन सी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है।
अमरूद के पेड़ 44 डिग्री सेल्सियस तक का तापमान बेहद आसानी से सहन कर सकते हैं। ज्यादा वर्षा वाले क्षेत्र अमरूद की खेती के लिए उपयुक्त नहीं माने गए हैं। ज्यादा वर्षा के कारण अमरूद के पौधे सड़ जाते हैं।
इसकी खेती के लिए गर्म तथा शुष्क जलवायु सबसे अच्छी मानी जाती है। ज्यादा ठंड से कई बार अमरूद के पौधों पर नकारात्मक असर देखा गया है।
कई बार भीषण ठंड में अमरूद के पौधों में पाला लग जाता है। इसके विपरीत अमरूद के पेड़ कड़ाके की ठंड भी झेल सकते हैं, बड़े पेड़ों पर ठंड का कोई खास असर नहीं होता है।
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अगर खेती के लिए बलुई दोमट मिट्टी का चयन किया गया है तो उसका पीएच मान 4.2 होना चाहिए। वहीं अगर अमरूद के पौधे लगाने के लिए चूनायुक्त भूमि का चुनाव किया गया है तो पीएच मान 8.2 होना चाहिए।
खेत तैयार करने के पहले दो से तीन बार अच्छे से जुताई कर लें। इसके बाद खेत में 15 गाड़ी प्रति एकड़ के हिसाब से सड़ी हुई खाद या कंपोस्ट डालें। इसके बाद खेत में 2 फीट व्यास के 8-10 सेंटीमीटर गहरे गड्ढे तैयार कर लें। गड्ढों की दूरी 20 फीट होनी चाहिए।
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रोपाई के पहले गड्ढों को सड़ी हुई गोबर की खाद और आर्गनिक खाद से भर दें। इसके बाद गड्ढों में पानी डालें। जब पानी सूख जाए और गड्ढों की मिट्टी बैठ जाए तब पौधे को गड्ढे के बीचों बीच लगा दें और मिट्टी से अच्छी प्रकार से दबाकर सिंचाई कर दें।
अमरूद के पेड़ों में छाल खाने वाले कीड़े, फल छेदक, फल में अंड़े देने वाली मक्खी, शाखा बेधक आदि कीट लगते हैं। इनके नियंत्रण के लिए जैविक कीटनाशक का प्रयोग कर सकते हैं।
अगर तब भी कीटों का प्रकोप कम न हो तो पौधों को नष्ट कर दें। इसके अलावा अमरूद के पेड़ों पर उकठा रोग और तना कैंसर जैसे रोग लगते हैं।
यह रोग भूमि में नमी होने के कारण फैलते हैं। इन रोगों के नियंत्रण के लिए ग्रसित डालियों को काटकर जाला देना चाहिए तथा कटे भाग पर ग्रीस लगा कर बंद कर देना चाहिए। इसके बाद भी अगर रोग से छुटकारा न मिले तो पौधे को तुरंत निकाल कर नष्ट कर देना चाहिए।
एक पेड़ से 150 किलो फल तक प्राप्त किया जा सकते हैं। यह फल जल्दी खराब हो जाते हैं, इसलिए इनकी तुड़ाई के बाद तुरंत मंडी में बेंचने के लिए भेज देना चाहिए।
उत्तर और पूर्वी भारत मे साल में दो बार अमरूद की फसल प्राप्त होती है। जबकि पश्चिम व दक्षिणी भारत में साल में तीन बार अमरूद के फल प्राप्त किए जा सकते हैं।